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आज के युग में, पर्मात्मा ने हमारी मातृभूमि भारत को एक प्रशंसनीय सर्वश्रेशठ सन्त व सर्वगुण व्यक्तित्व का तोहफ़ा दिया है. आप, धर्म-कर्मियों के मार्गदर्शक और एक सर्वश्रेशठ आध्यात्मिक महान गुरू हैं. आपका नाम बाबा एहसानुल्लाह खान वारसी है. नबी पवित्र पैगंबर (सल्लाहो अलय्है वसल्लम) ने ऐसे ही महान पुरुशों की पुष्टि कुछ इस तरह से की है.
عُلَمَاءُ اُمَّتِی کَاَنْبِيَاءِ بَنِی اِسْرَائِيْل
उलमा‌ए उम्मती का-अमबिया बनी इज़राइल
(मुनाकिब-ए-गौसुल आज़म बहवाला फ़ैज़ान-ए-सुन्नत)
मतलब: विद्वान (संत, वली-औलिया) बनि-इसरा‌इल के वंश के नबियों की तरह हैं
 
प्रारंभिक वर्ष:
 
हजरत बाबा एहसानुललाह ख़ान वारसी (रहमतुल्लाह अलैह) का जन्म, उत्तर प्रदेश, जिले गोरखपुर में एक छोटे से गांव बलुआ में हुआ. पिता हजरत अब्दुल्ला खान साहब और मां बीबी जमीलुन्निसा की पवित्र गोद में आपका पालन पोशन हुआ, समय - गुरुवार, २४ सितंबर १९२५ के दिन ईशा कि नमाज़ (रात कि प्राथना).

पीर-व-मुर्शीद हजरत एसनुललाह ख़ान वारसी जन्म से ही पर्मात्मा के लाड्लेि और दिव्य शक्तियों के मालिक थे। आप बचपन से ही एकांत, शांत और धेर्य पसन्द करते थे। बचपन में ही आपने अपनी सिद्धि लोगो में प्रकत किये जो दूसरे व्यस्क सन्तों में कभी देखी नहीं गई. गांव में शिक्षा पूरी करने के बाद, १९४६ में आप मुंब‌ई शहर में आ गए और "शिक्षक" के रूप में मुंब‌ई महानगर निगम में शामिल हो ग‌ए और स्थायी रूप से आप मुंब‌ई में ही रहने लगे.

जन्म से ही वह पवित्र पैगंबर (सल्लाहो अलय्है वसल्लम) से बहूत प्रेरित थे. पवित्र कुरान की यह वाणी जैसे उनके सीने पर छप गयी थी.
لَّقَدْ كَانَ لَكُمْ فِى رَسُولِ ٱللَّهِ أُسْوَةٌ حَسَنَةٌ
लकद काना लकुम फ़ि रसूल अल्लह अस्वाते हुस्ना
(मतलब: पवित्र पैगंबर सल्लाहो अलय्है वसल्लम का जीवन आपके लि‌ए सबसे अच्छा उदाहरण है)

जैसे पवित्र पैगंबर (सल्लाहो अलय्है वसल्लम) के जीवन के हर तौर तरीके एक प्रतीक के रूप में माने जाते हैं. आप भी अपने हर आचरण को ऐक श्रेष्ठ उदाहरण बनाने कि कोशिश मैं लगे रहते. छोटी उमर से ही धार्मिक समयचर्या का यह आलम था के आपके गुरु (पीर) साहब आपको ’मौलवी’ कह कर पुकारते थे. ’मौलवी’ यानी ऐसा व्यक्ति जो धर्म के नियम और संस्कृति का पुर्ण रुप से पालन करता हो. आपको नमाज़ यानी प्रथाना से ऐसा लगाव था के आप २४ घंटे पवित्र और स्वच्छ रहते. आप दिन की पांच समय की नमाज़ के इलावा तह्जुद (यानी मध्य रात्र) की, चाश्त और इश्राक (यानी भोर) तक की नमाज़ पडा पढ़ा करते थे. नमाज़ों के समय की पाबंदी ऐसी थी के आप जब मस्जिद में पोहंचते तब लोग अपनी घड़ी की सुई ठीक करते थे.
 
वारसी वंशक्रम में आपका आना:
 
हालांकि आप जन्म से ही एक वली (एक महान संत) हैं. आपको आध्यात्मिकता के पथ पर हज़रत आल्लाह मान शाह वारसी (रहमतुल्लाह अलैह) से दीक्षा प्राप्त हुई जो दिव्य व्यक्तित्व रखते थे. हज़रत आल्लाह मान शाह वारसी (रहमतुल्लाह अलैह) को हज़रत सिद्दीक शाह वारसी से और हज़रत सिद्दीक शाह वारसी को वारसी वंश के प्रथम अन्वेषक व आध्यात्मिक गुरू हज़रत वारिस अली शाह (रहमतुल्लाह अलैह) से दीक्षा प्राप्त हुई थी.

हज़रत अल्लाह मान शाह वारसी से पहली ही मुलाकात में, आप ने दीक्षा प्राप्त कर ली थी और दीक्षा की प्रक्रिया के दौरान आपने अपने गुरु को खाने-काबा में नमाज पेश करते देखा. इससे पता चलता है कि अल्लाह के प्रेम की तलाश इतनी तीव्र थी के आपने अपने दीक्षा के पहले पल में ही वह दृष्टि प्राप्त कर ली थी जो लोग क‌ई वर्षों की कठना‌इयों के बाद भी हासिल करने में असमर्थ रहते हैं.

दीक्षा के बाद आप बहुत सफलतापूर्वक आध्यात्मिक पथ पर अग्रसर हुए और आपको "कामिल विलायत" (पूरी तरह से प्रबुद्ध) का मुकुट पहनाया गया. परमात्मा ने आपको आध्यात्मिक धन से विभूषित किया और आम जनता की भला‌ई के लि‌ए इस दुनिया में अवगत कराया. परमात्मा के आदेशों का पालन करते हुए आपने अपना बाकी जीवन मानव जाति की सेवा में समर्पित कर दिया.
 
डेक्कन क्षेत्र के लिए आपकी यात्रा:
 
आप अपने गुरु के निर्देश अनुसार डेक्कएन (दक्षिण भारत) शेत्र से प्रभावित हुए.. जो आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक रूप से बहुत पिछड़ा हुआ था. इसके अलावा इस क्षेत्र में काला जादू भी अधिक मात्रा में था. बाबाजान ने गांव गांव की यात्रा की और लोगों को आध्यात्मिकता का पाठ पढ़ाया. इश्वर के निर्देश से १९७८ में आपने शहर की आबादी से दूर ऊंचा‌ई पर एक जगह ख़रीद लिये. जो कदरी रोड पर टमाटर मंडी के सामने एक टेकरी (पहाड़ी पर), जिला चित्तूर, तहसील मदनपल्ली, आंध्र प्रदेश में है. जहां वर्तमान में बाबाजान का मुख्य ट्रस्ट है. और आज इसी जगह पर आपकी पवित्र समाधि (मज़ार-ए-मुबारक) मौजुद है. (आपके पर्दा (समाधि) लेने क वक़्त रात्र १० बज कर १३ मिनट, ८ जनवरी १९९६ है).

इस्लामी महीने के अनुसार आपके समाधि लेने वाले दिन हर साल १६ शाबान को सूर्यास्त के बाद लोग कुल-शरीफ़ के रूप में श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं. कुल-शरीफ़ न केवल आपकी मज़ार-ए-मुबारक (मदनपल्ली) पर बल्कि अन्य सभी शाखा ट्रस्टों पर भी पेश की जाती है. इसके बाद २२वीं जनवरी से २५ वीं जनवरी तक आपका वार्षिक उर्स मनाया जाता है. उर्स के अंतिम दिन यानी २५वीं जनवरी को पीर-व-मुर्शीद का सात रंग का ध्वज लहराया जाता है. सत-रनगी ध्वज के साथ ही २५वीं जनवरी को पवित्र पैगंबर () का हरा ध्वज और वारिस पाक का पीला ध्वज भी लहराया जाता है. पर्मात्मा ने सात रंग और उनके अनुक्रम पीर-व-मुर्शीद पर प्रकट किये थे. अवलोकन करने पर पता चलता है के प्रत्येक रंग ईश्वर की दिव्य गुणवत्ता के प्रतीक हैं. यह प्रमाण है के आप को पर्मात्मा के इन गुणों पर पूरा अधिकार प्राप्त है.

बुध्जीवाइंयों ने यह पुष्टि किया कि आप उत्तम प्रकाश वाले और परम शक्तिमान सामर्थ हैं. और सभी रहस्यवादी शक्तियां आपके बस में हैं. निकट अवलोकन पर कोई नोट कर सकता है कि यही नूर-ए-मुस्तफ़ा (सर्वशक्तिमान प्रकाश) है. जब यह प्रकाश आदम (अलैह सलाम) के माथे में रखा गया, वह कुल जीवों के सबसे अच्छे जीव (अशरफुल-मख्लूक) कहलाए और देवताओं द्वारा सम्मानित किये गये और देवताओं ने सजदा (साष्टांग प्रणाम) किया. यही नूर-ए-मुस्तफ़ा (सर्वशक्तिमान प्रकाश) जब पवित्र पैगंबर सल्लाहो अलय्है वसल्लम के रुप में पुरी तरह जग ज़ाहिर हुआ तब आपको कुल कायनात का दयावान और पैगंबरों के “मुख्या” का खिताब मिला. यही नूर-ए-मुस्तफ़ा (सर्वशक्तिमान प्रकाश) जब पीर-व-मुर्शीद के चमते हृदय में आया तब आपको पवित्र पैगंबर सल्लाहो अलय्है वसल्लम का प्यारा और अल्लाह (ईश्वर) के खज़ाने का खजांची बना दिया. बाबा ने अपने मुरीद (शिष्यों) के दिलों को रोशन किया है और यह विश्वास जगाय है कि अल्लाह न काबे में है ना चर्च में, ना ही मंदिर में बल्कि वह मनुष्यों के हृदयों में है और जो लोग ईश्वर से निकटता प्राप्त कर लिये हैं वह परमात्मा के ही प्रतिबिम्ब हैं.

पीर-व-मुर्शीद प्रेम, ज्ञान और स्नेह के महान प्रतीक हैं. आप लोगों को मोहित करने वला कोमल हृदय और दूस्रोन के हृदय को निर्मल करने वली दृष्टि भी रखते हैं. आपके इन्ही सुन्दर गुणों के कारन समाज में सुधार और मनुष्य को आध्यात्मिक तौर से ऊपर उठाने में सरलता हुई.
 
पीर-व-मुर्शीद के उपदेश:
 
पीर-ओ-मुर्शीद की शिक्षा‌ऐं सूफ़ी शिक्षा‌ऐं हैं कि हर एक इंसान को एक सदगुरु की तलाश करके उन्की शरण में जाना चाहिए. ताकि मनुष्य को परमात्मा की प्राप्ति हो और वही गुरु इंसान के दिलों को साफ़ करके परमात्मा की पेह्चान करता है जिस्से इंसान के जीवन का लक्ष्य पुर्ण हो जाता है.

आपने अपने शिष्यों को निर्देश दिया के हर रात सोने से पहले दिन भर के अपने कहे-सुने और किये गये कर्मों का परीक्षण करें. अप्ने भले कर्मों के लि‌ए ईश्वर का धन्यवाद और बुरे व आक्रामक कार्मों के लि‌ए क्षमा मांगने का पर्याय बताया. ताकि भविष्य में अच्छे कर्मों के अधिक अवसर प्राप्त हों और बुरे कार्मों से बचा जा सके. मनुष्य को पुरी लगन से अपने कर्तव्यों क पालन करना चहि‌ए और समाज व प्रकृति के साथ सद्भाव पुर्ण तरीके से रहना चहि‌ए.

इंसान को हर पल इश्वर की मौजूदगी (उपस्थिति) का विश्वास ज़रूर होना चाहि‌ए और घमंड, भेदभाव तथा लालच इन दूषित आदतों से दूर रहना चाहि‌ए. मनुष्य को दूसरों में दोष खोजने के बजाय, अपने आप की समीक्षा करनी चाहि‌ए. आपने हमेशा ज़ोर देकर कहा कि इंसान खुद में सुधार करे ताकि उस्से जीवन में कामयाबी मिले.

आपने सब के लिए उपदेश दिया "प्रेम हमारा कर्तव्य है". क्योंकि प्रेम ही इस ब्रम्हांड की सृष्टि का कारण है और प्रेम से ही सारे मनुष्य के दिलों को जीता जा सकता है. प्रेम से ही ईश्वर से निकटता और उसकी प्राप्ती हो सकती है.
 
पीर-व-मुर्शीद के उद्धरण:
 
अपने शिष्यों के कल्याण और सुधार के लिए, बाबजान ने कई उपदेश दिए और एक अच्छा इंसान बनने के सरल तरीके दिखाए. कुछ उद्धरण एक अलग पृष्ठ पर दिए गए हैं.
बाबाजान के उद्धरण पढ़ने के लिय यहाँ क्लिक करें
 
मानव जाती के लिए पीर-व-मुर्शिद का मिशन:
 
आपकी महानता इंसान की भलाई के लिये है.. आपने हर मनुष्य को मानवता का सबक पढ़ाया. इंसान की बेहतरी के लि‌ए आपने तीन मौलिक सिद्धांत बता‌ए:
१) मात्र बात करने के बजाय, किसी को कार्य कर के अभ्यास कराना चाहिए क्योंकि कार्यों-प्रभाव में सुधारने की शक्ति अधिक होती है.
२) प्रत्यक्ष उपदेशों के बजाय; सही उदहारण के माध्यम से प्रचार करना चाहिए
३) समस्या से पहले स्थिति में सुधार पैदा करना चाहिए
 
आपके बचन हैं कि जब ईश्वर ने मनुष्यों के बीच कभी भेद-भाव नहीं किया; हवा, पानी और प्रकाश सभी के लि‌ए समान हैं, जन्म और मृत्यु भी सभी के लि‌ए समान है, इसलि‌ए मनुष्य को भी सबक लेना चाहि‌ए और प्रेम भाव से मिल्कर रहना चाहि‌ए वरना अपने जीवन के लक्ष्य ("भगवान से निकटता") को प्राप्त करने में सक्षम नहीं होंगे.

मनुष्य ईश्वर के वंशज का हकदार तभी हो सकता है जब वह यह स्वीकार कर ले कि सभी प्राणि परमेश्वर के परिवार से संबंध रखते हैं. आपके मिशन का उद्देश्य सभी मनुष्यों के बीच एकता पैदा करना है; लोगों के दिलों में पर्मात्मा के प्राकाश (नुर-ए-इलाही) का एहसास दिलाना है. पर्मात्मा के प्राकाश से अवगत करा कर विभिन्न धार्मिक भेदभाव को समाप्त करके लोगों में समानता पैद कर्न है और उन्के दिलों में देशभक्ति की भावना भी पैदा करना है.

इश्वर का प्रेम दिल में समाने के बाद ही एक मनुष्य दुसरे मनुष्य से प्रेम भाव से मिल सकता है. भारत में सूफी संतो ने ज्ञान का यही रास्ता चुना इसी लिए उनके धार्मिक स्थलों पर हर धर्म और जाती के लोग आते हैं और आध्यात्मिक तथा समाजिक रूप से लाभान्वित होते हैं.

भारत के सुदूर कोनों की जनता की सुविधा के लि‌ए, बाबाजान ने भारत के विभिन्न राज्यों में आसतानों (आश्रमों) की स्थापना की है जहां हजारों लोग आते हैं और आध्यात्मिक व संसारिक लाभ उठाते हैं. इन आसतानों (आश्रमों) के पते संपर्क पृष्ठ में दि‌ए ग‌ए हैं।

बाबाजान का मानना है कि चमत्कार दिव्य खिलौने हैं और अल्लाह इस तरह के खिलौना देकर खेलता है. इसलिए हर किसी को चमत्कारी शक्तियों का दिखावा करने से बचना चाहिए और लोगों को चमत्कारों में बिस्वास नहीं करना चाहिए उन्हें प्रकृति के नियमों के अनुसार सोचना और समझना चाहिए.. आपने कहा के पैगंबर नबी (स.अ.व) को मानना और उन्की बातों पर अमल करना ही सब से बडा चमतकार है. हालांकि कभी-कभी आप अपने शिष्यों के आत्मविश्वास के लि‌ए देविक चमत्कार भी किये जैसे आप एक पल में किसी शिष्ये कि मदद के लिये तुरंत सामने आये और उन्की मदद करके तुरंत गायब हो गए. आपने फ़रमाया के मैं अपने शिष्यों से रोज़ मिलता हूं. दूसरे शब्दों में बाबा ने हर शिष्य को साबित कर दिया है की है जहाँ भी मुरीद (अनुयायी) है, वहाँ पीर है मत्लब जहां इंसान वहीं भगवान.
 
 
आपके पाक जीवन और सिद्धांतों पर लिखी गई किताबें:
 
किसी गुरू से कृपा पाने के लिए उस गुरू से लगाव होना आवश्यक है. लगाव उस समय होगा जब आप गुरू के महान व्यक्तित्व के बारे में जानेंगे. इसी कारण पीर-ओ-मुर्शीद के पाक जीवन, शिक्षा‌ओं और इश्वर के भेद पर बहुत सारी किताबें लिखी गईं हैं. जैसे ’इसरार-ए-इलाही’, ’कामियाब मोअलिम और रूहानी रहनुमा’, फ़ायल-ए-हक़िक़ी’, ’नज़राना-ए-अक़िदत’ और ’आईना-ए-रब’. ’आईना-ए-रब’ पीर-ओ-मुर्शीद के पूर्ण जीवनी है, जिस में आपकी सांसारिक गौरव, आपके रहन-सहन तथा बहुत सारे चमतकारों का भी उल्लेख किया गया है. यह किताब पीर-ओ-मुर्शीद के सजादा-नशीन और जा-नशीन हज़रत बाबा नासीबुल्ला खान वारसी से किसी भी ब्रांच ट्र्स्ट पर मिल सकती है.